क्या आपको है डायबिटीज़? पहचानें इन 8 संकेतों को

 

आपको है डायबिटीज़

डायबिटीज़

डायबिटीज़ हमारी जिंदगी में मिठास काफी मायने रखती है।लेकिन जरूरत से ज्यादा मिठास कभी कभी जिंदगी का स्वाद बिगाड़ देती है और बना देती है हमें मीठे का।जिसे आम भाषा में हम शुगर या डाइअबीटीज़ कहते हैं।

इसमें इंसान के शरीर में शुगर का लेवल एक तय सीमा से ज्यादा बढ़ जाता है और शरीर बड़े गुरु को उस को इस्तेमाल नहीं कर पाता और ये ग्लूकोस ब्लड में मिलकर पूरे शरीर के कई अंगों को काफी नुकसान पहुंचाता है। इसलिए वक्त रहते इस बिमारी से बचना बहुत जरूरी है।

डायबिटीज़

हिंदुस्तान में डाइअबीटीज़ के सबसे ज्यादा मरीज हैं और हर तीसरा इंसान डायबिटीज़ का शिकार।अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में लगभग 7.4,00,00,000 लोग डायबिटीज़ से जूझ रहे हैं और 2024 तक डायबिटीज़ के मरीजों की संख्या 12,50,00,000 पहुंचने का अनुमान।

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इंटरनेशनल डायबिटीज़ फ़ेडरेशन आईडीएफ के मुताबिक दुनियाभर में 12.11,00,000 से ज्यादा बच्चे और किशोर टाइप वन डायबिटीज़ से जूझ रहे हैं। इनमें आधे से ज्यादा पेंशन की उम्र 15 साल से भी कम है और इन आंकड़ों में भी सबसे ज्यादा भारतीय बच्चे शामिल हैं। पिछले साल दुनियाभर में डायबिटीज़ से करीब 8,00,000 से ज्यादा मौतें हुई थी और आज भी इतने अध्ययन और शोध के बाद इस बिमारी का इलाज नहीं मिल पाया।

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आप ज़रा नजर डालते हैं इस बिमारी के इतिहास के बारे डाइअबीटीज़ का पहला मामला है ज़िप में 1550 20 ही में पाया गया था।पहली बार यहीं से बिमारी के रूप में इसे पहचाना गया और बार बार पेशाब जाने के लक्षण को इसका पहला लक्षण बताया गया।लेकिन शुगर लेवल को चेक करने के तरीके की खोज सबसे पहले भारत।

फाउंडेशन की रिपोर्ट के मुताबिक ब्लड शुगर की जांच करने का सबसे पहला तरीका चींटियों की मदद से खोजा गया था। इंसान के यूरिन के आसपास अगर ढेर सारी चिट्ठियां इकट्ठा हो जाती थी तो माना जाता था कि उस व्यक्ति के शरीर में शुगर का लेवल बढ़ा हुआ।इस बिमारी को डाइअबीटीज़ नाम देने का श्रेय ग्रीक फ़िज़िशन।

डायबिटीज़

जाता है। उन्होंने इसके सबसे कॉमन लक्षण के नाम पर इसे डाइअबीटीज़ का नाम लिया। इस बिमारी के ज्यादातर मरीजों को बार बार पेशाब के लिए जाना पड़ता था, इसलिए इसका नाम डाइअबीटीज़ रखा गया।

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अब जानिए इस बिमारी के होने की वजह क्या है? हमारे शरीर को सुचारू रूप से चलने के लिए एनर्जी की आवश्यकता होती है और ये एनर्जी हमारे शरीर में मौजूद ग्लूकोस से मिलती है। अब ये ग्लूकोस कैसे बनता है? हमारा शरीर हमारे द्वारा कार्बोहाइड्रेट के रूप में खाई और पी गई चीजों को तोड़कर ग्लूकोस बनाता है और ये ग्लूकोस हमारे खून में मिलकर एक फूल की तरह काम करता है।

इसके लिए हमें एक हार्मोन की जरूरत होती है जिसे इंसुलिन करें।ये होर्मोन हमारी पैंक्रियास में बनता है।

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ये इंसुलिन ही है जो रक्त में मिलकर ग्लूकोज के स्तर को कंट्रोल करने का काम करता है। इसका काम भोजन को ऊर्जा में बदलना होता है। अगर बनाना बंद कर देती है तो ग्लूकोस ऊर्जा में तब्दील नहीं होगा और ब्लड में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाएगी। इसी अवस्था को मेडिकल टर्म में डायबिटीज़ मेलिटस कहा जाता है।

अब डाइअबीटीज़ के प्रकारों के बारे में जानते हैं

 डाइअबीटीज़ दो तरह की होती है पहले टाइप वन और दूसरी टाइप। अब आइए जानते हैं इन दोनों में फर्क क्या है? सबसे पहले बात करते हैं डाइअबीटीज़।

डायबिटीज़

टाइप वन डायबिटीज़ आनुवांशिक तौर पर होती है ये ऑटो इम्यून डिज़ीज़।

जब शरीर में इंसुलिन बनना बंद हो जाता है, तब टाइप वन डायबिटीज़ होती है। टाइप वन डायबिटीज़ बच्चों और किशोरों में होने वाली डायबिटीज़ की बिमारी है। इस प्रकार के डायबिटीज़ में पैंक्रियास के बीटा सेल्स पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं और इस तरह इंसुलिन का बनना संभव नहीं होता। टाइप वन डायबिटीज़ से ग्रस्त लोगों को रोजाना इन्जेक्शन के द्वारा इंसुलिन लेना होता है। अब जानिए टाइप टू डायबिटीज़ के बारे में। टाइप टू डायबिटीज़ हमारी गलत जीवनशैली की थी।

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अगर शरीर में इंसुलिन की मात्रा कम होने लगे और शरीर उसे ठीक से इस्तेमाल नहीं कर पाता है तो ऐसी स्थिति में डायबिटीज़ टाइप टू की शिकायत शुरू होती है। मोटापा, हाइपरटेंशन, नीम की कमी और खराब लाइफ स्टाइल होने के कारण से टाइप टू डायबिटीज़ होने के कारण।

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क्योंकि टाइप टू के लिए खराब जीवनशैली जिम्मेदार है इसलिए कभी भी हो सकती है। पर अमूमन ये व्यस्त लोगों में होती सही डाइट और एक्सर्साइज़ की वजह से टाइप टू डायबिटीज़ को नियंत्रित करने का प्रयास किया जा सकता है। कुछ स्थिति में इनसुलिन इंडक्शन की आवश्यकता हो सकती है। इसलिए डायबिटीज़ के मरीज को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए की वो कब और क्या खा रहे हैं, जिससे उनका ब्लड शुगर लेवल नियंत्रित रहे। इसके लिए डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाएं और नियमित एक्सरसाइज से

इस बिमारी को पूर्णता कंट्रोल में रखा जा सकता है। इसलिए हमें आज जरूरत है अपनी लाइफ स्टाइल में सुधार करने की ताकि हम इस बिमारी से बच सकें और एक सवस्थ और सेहतमंद जिंदगी जी सकें।

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